Sunday, 19 February 2017

         लप्रेक-2
                                                          
" नीतू! 
एक बात पूछूँ?
डर लगता है कहीं, तुम फिर मुझे ब्लॉक न कर दो''
"हा हा हा"
"अच्छा! तुम्हें डर भी लगता है?''
" ते से बहोत...."
"तू कुछ बक रहा था?"
"रहेन दे, अपन को शहीद न होना है"
"अबे ज्यादा सेंटी मत बन"
" अरे यही कि, मैं शायराना अंदाज़ में टेक्स्ट करता हूँ। और तू बस शुक्रिया कहती हो...खुदा कसम फुलस्टॉप सुनायी देता है"
"चुप हो जाओ ओ शायर के बच्चेss..."
" थोड़ा अटेंशन दे दिया कर यार, कुछ समझा भी कर..."


                 यह मेरा पहला लप्रेक है 







“ चारु !
प्रेम जिंदगी में अप्रत्याशित ही आता है, उपहार की तरह । दोस्ती से प्यार पनपता है या प्यार से दोस्ती , मुझे नहीं पता । बस इतना पता है कि इश्क एक एहसास का नाम है, जो दिल के तार से जुड़ जाता है । मैं जहाँ कहीं जाता हूँ , तुम मेरे साथ होती हो”
“अच्छाSSS”
“एक बात कहूँ ?”
“ कह डालिए जनाब”
“ तुम वह सुपरटॉनिक हो, जो मुझे रचनात्मक बनाती है”
“अच्छा! बेटा मसखा लगाने सीख गए हो, यही है मेरा बर्थ डे गिफ्ट?”
“धत्त पगली, मैं तो लघु प्रेम कथा लिखने की कोशिश कर रहा था”