
पिछले वर्ष वर्धा
में बिताया गया पल आज मेरे जेहन में सजीव
सा हो गया है । शिक्षक दिवस के दिन हमारे बैच के सारे बच्चों ने मिलकर पढ़ने के
बजाय शिक्षकों के बारे जानने का निर्णय लिया । शुरूआत अस्थाना सर से हुयी । अपने
विद्यार्थी जीवन की बातें करते -करते अस्थाना सर भावुक हो गये... वे उन दिनों की स्मृतियों में चले गए और हमलोगों
को उनसे स्वरचित एक से बढ़कर एक नज्म और गजल सुनने को
मिला । दूसरी कक्षा सुनील सर की थी ...उन्होंने अपने संस्मरणों से पूरा jnu हमलोगों के सामने पेश कर दिया । मुझे लग
रहा था जैसे मैं jnu में हूँ ...और डॉ मैनेजर पाण्डेय , डॉ
वीर भारत तलवार मेरे सामने में हैं ।
उसके बाद उन्होंने हमलोगों के बीच छुपे फनकारों को खोज निकाला । कवि सुनील ,गायक
गजेन्द्र , गायिका अंजलि और भावना का डांस ... मैं सिर्फ़ दर्शक और श्रोता था ।
सुनील सर की ताकत है किसी से उसका बेस्ट कैसे निकाला जा
सकता है ... कभी –कभी पढ़ाते समय कक्षा में जब
वे डिवेट कराते ... ऐसा वातावरण का निर्माण होता था कि मुझ जैसे संकोची के
मुँह से भी शब्द निकलने लगते ।
अपने अध्ययन के
दौरान जिन आध्यापकों की कक्षा ज़्यादा मुझे
ज़्यादा रुचिकर लगी -- 5वीं तक विजय सर,10वीं में चंद्रशेखर आचार्य सर , 12वीं में अंजय सर , स्नातक में तरुण सर , अमर सर ,शरदेन्दु सर और बलराम सर । परास्नातक में
आशीष त्रिपाठी सर ,अवधेश नारायण मिश्र सर ,पंकज सर, मनोज सर ,प्रधान
सर और श्री प्रकाश शुक्ल सर । वर्धा में सुनील सर ,अरुणेश सर , रामानुज
सर और एम॰ फ़िल ॰ में अपूर्वानन्द सर और
गौतम सर की कक्षा में मुझे ज़्यादा रुचि होती थी ।अभी तक अपने अकादमिक जीवन में चार
शिक्षक की कक्षाओं का दीवाना हुआ हूँ तरुण
सर (से निराला पढ़ना ), आशीष सर( से ‘हयबदन ’) ,सुनील सर (से मनोविश्लेषण) और अपूर्वानन्द सर (को सुनना ...क्या बोलते हैं
... हर शब्द मानों तोल -तोलकर निकल रहा हो तर्क की कसौटी पर...!प्रमाण के साथ ...!!)
मैं बहुत कम समय सुनील सर से पढ़ा ,लेकिन
एक माह के सीमित अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ वे अपने विद्याथियों का पूरा ख्याल रखते
थे । वर्धा में अध्ययन के दौरान एक वाक्या हुआ जिसका जिक्र करना चाहता हूँ हुआ यों कि मैं क्लास छोड़ कर नाट्य अध्ययन विभाग में 300 फिल्म देख
रहा था । जैसे ही सुनील सर को पता चला ... उन्होंने फोन किया ‘....कहाँ
हो ? जल्दी आओ
...क्लास करो ’ ऐसी और कई घटनाएँ हैं ...मैंने हमेशा उन्हें
विद्याथियों के सहयोग लिए तत्पर पाया
। वर्ग के अंदर और बाहर भी ।वे कैंपस में भी हमलोगों से मिलते बातें करते
... कभी - कभी चाय –बिस्कुट भी चलता । वे
पाठ्यक्रम से इतर भी अपने विद्यार्थियों फिल्मों , नाटकों एवं सांस्कृतिक आंदोलनों रु – ब –रु करवाते रहते हैं ... मुझे भी पहली बार गंभीर फिल्म से पहली बार उन्होंने ही परिचित करवाया । श्याम बेनेगल , सत्यजीत रॉय जैसे
निर्दशकों की फिल्में उन्होंने ही पहले-पहल मुझे
दी । जिसके बाद मैं स्मिता पाटिल कि फिल्में खोज़ –खोज़
कर देखने लगा हूँ ... !
उनसे मुझे बहुत कम समय पढ़ने - सीखने का अबसर मिला । फिर भी अपने सीमित अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ सुनील सर को
हमेशा विद्यार्थियों के प्रति समर्पित
पाया और विद्यार्थियों के लिए लड़ते हुये
पाया । सच बोलने बाले और हमेशा सच्चाई का
साथ देने बाले हमेशा से व्यवस्था के शिकार होते रहें हैं । हाल- फिलहाल में आईएएस दुर्गानागपाल , दलित
चिंतक कंबल भारती , लोक गायक हेम मिश्रा आदि भी व्यवस्था
के साजिश हुये हैं । सुनील सर को
भी सच्चाई का साथ देने और ईमानदारी से अपने कार्य करने का पुरस्कार मिला है ;क्योकि भारत में नमक का दारोगा ही वर्खास्त होता है ....!

आपने बहुत ही बेहतरीन तरीके से लिखा है। यह काबिले-तारीफ है। उससे ज्यादा आपके सच के साथ खड़े होने के साहस को सलाम करना चाहिए। जय भीम !! जय भारत !!!
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए शुक्रिया ... मैंने जो महसूस किया है वही लिखा है।
Deleteसबसे पहले मैं अजय को बधाई देना चाहता हूँ आपने सर के बारे में लिखा...!!
ReplyDeleteजहाँ तक मैं जानता हूँ कि
डॉ. सुनील कुमार 'सुमन' सर को हमने हमेशा से छात्रों-नवजवानों, महिलाओं, दलित-आदिवासिओं, शोषितों आदि की बात करते हुए सुना है. लार्ड बुद्धा टी.वी. चैनल पर भी मैंने कई मुद्दों पर सुना और वर्धा में स्थित हिंदी विश्वविद्यालय यहाँ सिर्फ एक ही मात्र आदिवासी शिक्षक है. इसकी जानकारी फेसबुक से माध्यम से मिली. वहां की एक छात्रा अंकिता यादव ने अपना शोध-गाइड बदलने के लिए आवेदन-पत्र दिया. जिनको वहां के कुलपति विभूति नारायण राय ने फर्जी केस बनाकर निलंबन कर दिया..!!
क्या किसी विश्वविद्यालय में ऐसा होता होगा...???
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